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March 16, 2025
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लेख: भारत को लेकर क्यों नरम पड़े मुइज्जू, पड़ोसी देशों का संकट तो वजह नहीं?

लेख: भारत को लेकर क्यों नरम पड़े मुइज्जू, पड़ोसी देशों का संकट तो वजह नहीं?

लेखक: प्रणव ढल सामंता
अस्थिरता के भंवर में फंसे पड़ोसी मुल्कों की सूची में बांग्लादेश भी शामिल हो गया। पिछले साल मालदीव में भी कुछ ऐसे ही हालात हो गए थे, जब मोहम्मद मुइज्जू भारत विरोधी भावनाओं के सहारे सत्ता में पहुंचे। 2022 में श्रीलंका में बांग्लादेश जैसा ही दृश्य नजर आ रहा था।

भारत का बढ़ता प्रभाव
भारत ने श्रीलंका में शानदार वापसी की है। चीन के मुकाबले अब वहां भारत काफी मजबूत स्थिति में है। और अगर विदेशमंत्री एस जयशंकर के हालिया मालदीव दौरे की रोशनी में देखा जाए तो मुइज्जू भी अपनी गलती सुधारने की राह पर हैं। साफ है कि बदलती भू राजनीतिक और आर्थिक वास्तविकताएं भारत के बढ़ते प्रभाव की नई कहानी सुना रही हैं।

मालदीव की मुश्किलें
मिसाल के तौर पर मालदीव को लिया जाए। मई महीने में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने उसे चीन के बढ़ते कर्ज को लेकर चेतावनी दी। एक महीने बाद रेटिंग एजेंसी फिच ने उसकी रेटिंग कम कर दी। एजेंसी का आकलन था कि कम होता विदेशी मुद्रा भंडार और बढ़ता विदेशी कर्ज नई सरकार के लिए कठिन चुनौतियां खड़ी कर रहा है।

संकट के आसार
विश्व बैंक की अंतरराष्ट्रीय कर्ज रिपोर्ट 2023 के मुताबिक मालदीव के कुल विदेशी कर्ज का 30 फीसदी चीन से लिया गया है जो 4 बिलियन डॉलर से ऊपर बैठता है। जिस चीनी कर्ज के जाल में श्रीलंका फंसा, उसमें कई और छोटी अर्थव्यवस्थाएं फंसीं। मुइज्जू को यह समझते देर नहीं लगी कि उन्हें भारत की मदद की जरूरत है।

जरूरी चीजों के बढ़े दाम
इस बीच भारत पर निर्भरता कम करने के लिए पश्चिम एशिया से खाद्य आपूर्ति शुरू कराने जैसे मुइज्जू के प्रयासों के परिणाम यह हुआ कि मालदीव में इन सामानों के दाम बढ़ गए। जल्दी ही साफ हो गया कि खाद्य और आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति के लिहाज से मालदीव के लिए भारत ही सबसे अच्छा विकल्प है।

कोलंबो की मदद
श्रीलंका में भी 2022 का संकट अभी तक भारत के लिहाज से फायदेमंद ही साबित हुआ है। कोलंबो में वित्तीय संकट आने पर भारत ने सबसे पहले मदद का हाथ बढ़ाया था। अहम मौकों पर लिक्विडिटी उपलब्ध कराई और फिर IMF पैकेज सुनिश्चित करने में भी सहायता की। आज श्रीलंका में महंगाई दर 3 फीसदी से नीचे है जबकि सितंबर 2022 में यह 67.4 फीसदी थी।

चुनावों पर नजर
जहां तक चीन से जुड़ी चिंताओं का सवाल है तो कोलंबो ने श्रीलंकाई समुद्री सीमा में विदेशी रिसर्च जहाजों को पहले ही बैन कर दिया है। हालांकि यह प्रतिबंध अगले साल समाप्त होने वाला है लेकिन चीन की ओर श्रीलंका के बढ़ते रुझान की समस्या अब समाप्त हो चुकी है। इसी साल श्रीलंका में होने वाले चुनावों के मद्देनजर भारत भी खासा सतर्क है और सत्ता के सभी दावेदारों से बातचीत कर रहा है।

आपदा में अवसर
ऐसे में दो बातें गौर करने लायक हैं। एक, किसी पड़ोसी देश में पैदा हुए किसी संकट पर भारत हमेशा काबू पा ले या उसे हल कर दे यह जरूरी नहीं है। दो, भारत ऐसे संकट को अवसर में जरूर तब्दील कर सकता है, खासकर मौजूदा भू राजनीतिक संदर्भों में। यह इसलिए भी संभव है क्योंकि भारत के अपने मजबूत इकॉनमिक प्रोफाइल की बदौलत इस क्षेत्र में उसका आर्थिक प्रभाव भी बढ़ा है।

स्थिरता लाने में भूमिका
पिछले एक दशक में भारत ने खास तौर पर चार प्रमुख क्षेत्रों में अपनी जड़ें मजबूत की हैं- फाइनैंस, सप्लाई चेन, पेट्रोलियम और इन्फ्रास्ट्रक्चर। इन क्षेत्रों में किया गया निवेश अब राजनीतिक संकटों के दौरान स्थिरता लाने में अहम भूमिका निभाता है। आपसी रिश्तों के समीकरणों की बदौलत निर्भरता के धागों में उलझे इन देशों की हर सरकार संकट की स्थिति में भारत का समर्थन सुनिश्चित करना चाहती है।

नेपाल में ट्रांमिशन लाइन
नेपाल में भारत ने तीन और ट्रांसमिशन लाइन स्थापित कर दी है। इससे अब काठमांडू अतिरिक्त बिजली निर्यात करने की स्थिति में आ गया है। भारत, नेपाल और बांग्लादेश के बीच हाल ही में बिजली खरीद का एक समझौता हुआ है। त्रिपुरा के NTPC प्लांट और झारखंड (गोड्डा) के अडाणी पावर प्लाटं से बांग्लादेश को सप्लाई शुरू हो चुकी है।

संप्रभुता से छेड़छाड़ नहीं
बांग्लादेश की कोई भी नई सरकार थोड़ी सी स्थिरता पाते ही भारत के साथ आर्थिक आदान-प्रदान की प्रक्रिया दुरुस्त करना चाहेगी। भारत के जितने भी संभावित विकल्प हैं, आगे चलकर ज्यादा जोखिमभरे और महंगे साबित होते हैं। चीन के विपरीत भारत न तो अपनी मदद को हथियार की तरह इस्तेमाल करता है और न ही इन देशों की संप्रभुता के साथ किसी तरह की छेड़छाड़ करता है। इसके अलावा यह बात भी है कि भारत का हित आर्थिक तौर पर समृद्ध पड़ोस सुनिश्चित करने में है क्योंकि इनमें से किसी भी देश में आया संकट आसानी से भारतीय भूक्षेत्र में प्रवेश कर सकता है।

भारत के पक्ष में समीकरण
इस तरह व्यापक भू राजनीतिक समीकरण भारत के पक्ष में नजर आते हैं, आजादी के बाद शायद पहली बार ऐसा हुआ है। शेख हसीना सरकार को लेकर भारत और अमेरिका की राय अलग-अलग है। लेकिन क्या वे इस असहमति का फायदा चीन को उठाने देंगे? भारत और अमेरिका के बीच सामरिक साझेदारी की अहमियत को देखते हुए दोनों देशों का हित इसी में है कि वे इन असहमतियों को आपस में ही हल करने की कोई राह निकाल लें।

संकट का मिले फायदा
अस्थिर सरकारें नियंत्रित नहीं की जा सकतीं। ऐसे में आर्थिक ढांचे तैयार करते चलना खासा महत्वपूर्ण हो जाता है। ताकि हर संकट सिर्फ अस्थिरता ही न लाए, रणनीतिक प्रभाव बढ़ाने का अवसर भी बने।

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